उत्तराखंड में फौरी राहत के बाद एक बार फिर पारा चढ़ने लगा है। चटख धूप के दिन में पसीने छुटा रही है। जबकि, शाम को ठिठुरन बरकरार है। अगले दो दिन मौसम शुष्क बना रहने का अनुमान है। उत्तराखंड में मौसम की बेरुखी वन विभाग की भी चिंता बढ़ा रही है। 71 प्रतिशत वन क्षेत्र वाले प्रदेश में जंगल की आग का खतरा भी अधिक रहता है। वर्षा कम होने के कारण इस बार चुनौती और बड़ी होने की आशंका है। आपको बता दें 15 फरवरी से फायर सीजन शुरू होने के बाद सप्ताहभर में ही करीब 51 हेक्टेयर वन आग की भेंट चढ़ चुके हैं।

आने वाले दिनों की चुनौतियों को देखते हुए वन विभाग ने कसरत भी तेज कर दी है। वन कर्मियों को प्रशिक्षण देने के साथ ही वन पंचायतों, महिला एवं युवक मंगल दलों से भी सहयोग मांगा जा रहा है। इस बार शीतकाल में सामान्य से करीब 60 प्रतिशत कम वर्षा हुई। ज्यादातर शुष्क मौसम रहने के कारण फरवरी में ही गर्मी का एहसास होने लगा है। साथ ही वन क्षेत्रों में भी नमी कम होने से आग लगने का खतरा बढ़ गया है। मौसम के मौजूदा मिजाज को देखते हुए अगले कुछ माह भारी पड़ सकते हैं। वर्षा कम होने के साथ ही चोटियों पर भी बर्फ न के बराबर बची है। फायर सीजन शुरू होने के साथ ही वन विभाग की धड़कने भी बढ़ गई हैं। अब तक प्रदेश में जंगल की आग की 26 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 51.23 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है।

आमतौर पर राज्य में प्रतिवर्ष जंगल की आग की औसतन दो हजार से 22 सौ घटनाएं होती हैं। जिसमें करीब तीन से साढ़े तीन हजार हेक्टेयर वन आग की भेंट चढ़ जाता है। बीते वर्ष 2022 में जंगल की आग की 22 सौ घटनाएं हुईं। जिनमें करीब 35 सौ हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा, जबकि वर्ष 2021 में करीब 2800 घटनाएं हुई थीं। प्रदेश में 11 हजार 300 वन पंचायतें हैं। फायर सीजन में वन पंचायतों की उपयोगिता बढ़ जाती है। वन विभाग की ओर से वन पंचायतों की भागीदारी बढ़ाए जाने का प्रयास किया जा रहा है।

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