सरकार भले ही बेटियों की रक्षा के लिए क‌‌ई अभियान चला रही हों, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा फल फूल रहा हों या फिर बेटियों और बेटों में कोई भेदभाव ना होने की बातें बड़े बड़े दावों के साथ की जा रही हों परन्तु वास्तविकता यही है कि राज्य के क‌ई शहरों, जिलों में लिंगानुपात में काफी अंतर देखने को मिल रहा है। जिसका असर अब शादी विवाह पर भी पड़ने लगा है। बात अगर उत्तराखण्ड की ही करें तो भी सीमांत जनपद पिथौरागढ़ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है जहां 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या महज 907 है। यही कारण है कि लोगों द्वारा शादी के लिए लड़कियां न मिलने की बातें कही जा रही है। यह केवल बातें नहीं हैं वरन एक कटु सत्य है जिसकी पुष्टि क‌ई रिपोर्ट्स में भी की जा चुकी है। आगे पढ़ें:

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एक रिपोर्ट्स में तो यहां तक कहा गया है कि पिथौरागढ़ जिले के अधिकांश लोगों अपने लड़कों का विवाह कराने के लिए लड़कियों की तलाश में नेपाल की ओर भी दौड़ लगा रहे हैं। हालांकि वहां भी उन्हें शादी योग्य लड़कियां न मिलने के कारण खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। सरकारी अभिलेखों के मुताबिक 2022 में पिथौरागढ़ जिले के एक ही लड़के की शादी नेपाल से हुई है जबकि 2020 में 5 एवं 2019 में इस तरह के 7 मामले सामने आए हैं। इसके पीछे की सच्चाई जानने पर पता चलता है कि आज भी लोग भ्रूण की जांच कराने से पीछे नहीं हट रहे हैं। गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता करने के लिए लोग ना केवल नेपाल की ओर रुख कर रहे हैं बल्कि मोटी रकम दिखाकर हल्द्वानी खटीमा के क‌ई अस्पतालों में भी इसका परीक्षण कराए जाने की बातें सामने आ रही है। पिथौरागढ़ जिले के आठों विकासखण्डों के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो वर्ष 2021-22 में यहां 2989 लड़कों के सापेक्ष महज 2731 लड़कियों ने जन्म लिया। अर्थात वर्ष 2021-22 में लिंगानुपात 907 था, जबकि इससे पूर्व वर्ष 2020-21 में 948 हुआ था इसके विपरित वर्ष 2011-12 में यह महज 816 था। अर्थात वर्ष 2011 में 1000 लड़कों पर 816 लड़कियों का ही जन्म हुआ था।

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