जोशीमठ में उपजे संकट का असर अब आर्मी पर भी पड़ सकता है। दरअसल इसी रूट के जरिए सेना सामरिक ठिकाने और सीमांत इलाके मलारी और नीति पास तक पहुंचती थी। सड़कों के खरब हो जाने और दरारों के चलते अब इस रूट पर भारी वाहनों को ले जाना खतरे से खाली नहीं है। बदरीनाथ हाईवे पर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ सेना के लिए वैकल्पिक मार्ग तलाशना चुनौती बन सकता है। इस सीजन जब बदरीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे तो पर्यटकों को जोशीमठ से होकर ही जाना होगा, लेकिन इस रूट की हालत अब बहुत अच्छी नहीं है। यह मार्ग कई स्थानों पर भू-धंसाव की चपेट में है। रोड अधिक दबाव सहने की भी स्थिति में नहीं है। इतनी जल्दी वैकल्पिक रूट तैयार भी नहीं हो सकता।

जोशीमठ की तलहटी में निर्माणाधीन हेलंग-मारवाड़ी बाईपास बदरीनाथ यात्रा का एक विकल्प हो सकता था, लेकिन फिलहाल इसका काम रुका हुआ है। डॉ.सिन्हा ने कहा कि अगर इस मार्ग पर आज भी काम शुरू हो जाता है, तब भी इसे बनने में दो से ढाई वर्ष लगेंगे। इसलिए इसे विकल्प के तौर पर नहीं देखा जा सकता। बाईपास करके पर्यटकों को बदरीनाथ और माणा पहुंचाया जा सकता है। इससे जोशीमठ का लोड काफी कम होगा। वर्ष 1988-89 में यूपी सरकार ने सिंचाई विभाग को हेलंग-मारवाड़ी बाईपास निर्माण की स्वीकृति दी थी। तब सड़क कटिंग का काम सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने शुरू किया था लेकिन स्थानीय लोगों ने बाईपास का विरोध शुरू कर दिया। तब लोगों ने तर्क दिया था कि यदि इस बाईपास का निर्माण हो गया तो जोशीमठ में पर्यटन व तीर्थाटन गतिविधियां ठप पड़ जाएंगी।

वर्ष 1991 में रामकिशन सिंह रावत के नेतृत्व में स्थानीय लोग सड़क के विरोध में उच्च न्यायालय इलाहबाद गए और न्यायालय से इस पर रोक लग गई। तब बाईपास का निर्माण ठप पड़ गया था। ऑलवेदर रोड परियोजना कार्य के तहत 2021 में केंद्र सरकार ने फिर से हेलंग बाईपास के निर्माण को हरी झंडी दी। लेकिन, यह रूट सेना के दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, सेना मौजूदा रूट जोशीमठ से ही बॉर्डर एरिया तक जाना चाहती है। चूंकि, सेना की सीमांत पोस्ट मलारी, नीति पास जैसे बेहद महत्वपूर्ण रणनीतिक लोकेशन तक जोशीमठ होकर ही जाया जा सकता है। इसलिए जोशीमठ-मलारी मार्ग ऑलवेदर रोड से अलग भारतमाला प्रोजेक्ट का हिस्सा है। सेना चाहती है कि ऐसा वैकल्पिक रूट हो जो जोशीमठ के आसपास से होकर गुजरे। अब तक जोशीमठ से मलारी और नीति पोस्ट तक पहुंचने के लिए जिस रूट के इस्तेमाल किया जा रहा था, वो भी धंसाव की चपेट में है। ऐसे में आर्मी के लिए बेहद जरुरी है कि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इलाकों में पहुंच के लिए नया रूट बनाया जाए।

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