शुक्रवार रात को भारी बारिश ने देहरादून और टिहरी जिले में कहर बरपाया था। घटना के 48 घंटे बाद भी मलबे में दबे 13 लोगों का अब तक कोई भी पता नहीं लग पाया है। एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और प्रशासनिक टीम खोज एवं बचाव कार्य में जुटी है। टिहरी जिले के गवाड़ गांव में पांच लोग मलबे में दबे हैं। इसी जिले के गोदी कोठार गांव में मलबे में दबी महिला का भी पता नहीं चला पाया है। जिला प्रशासन ने इस महिला को शनिवार को पहले मृतक बताया था, जिसे अब लापता बताया गया है। गढ़वाल मंडल आयुक्त के मुताबिक अतिवृष्टि के बाद से पूरे मंडल में एनडीआरएफ की 32 और एसडीआरएफ की 44 टीम लगी है।

टिहरी के गवाड़ गांव का घर मलबे के साथ बहुत नीचे चला गया है, जिससे बचाव कार्य में जुटी टीम को मशक्कत करनी पड़ रही है। इसके अलावा देहरादून जिले के लापता सात लोगों के लिए भी सर्च ऑपरेशन जारी है। आठ मकान पूरी तरह से और 44 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं। 63 पशुओं की मौत हुई है। प्रभावित क्षेत्रों में राशन और खाने के पैकेट पहुंचाए जा रहे हैं। देहरादून में रविवार को सौंग नदी में एक शव जरूर बरामद किया गया है। दूसरी तरफ, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर के जरिए जरूरी सामग्री पहुंचाई गई। आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लापता लोगों के लिए सर्च और रेस्क्यू आपरेशन लगातार जारी है। कोशिश की जा रही है कि जल्द से जल्द लापता लोगों को तलाश लिया जाए।

आपदा के बाद कई गांव ऐसे हैं, जिनका मुख्य मार्गों से संपर्क पूरी तरह से टूट चुका है। पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता सीएम पांडे ने विभागीय इंजीनियरों संग क्षतिग्रस्त पुलों के साथ टूटी सड़कों का जायजा लिया। उन्होंने सड़कों की मरम्मत का अभियान और तेज करने के आदेश दिए हैं। वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक इस आपदा के कारणों का पता लगाने में जुट गए हैं। जिससे भविष्य में इस प्रकार की घटना होने से पहले ही जन-धन को हानि से बचाया जा सके। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचॉद साईं ने बताया कि आपदा प्रभावित इलाकों में संस्थान के वैज्ञानिक भूस्खलन समेत तमाम पहलुओं पर अध्ययन कर रहे हैं।

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