बदरीनाथ धाम की ऊँची चोटियां इन दिनों अप्रत्याशित रूप से बर्फ से खाली नजर आ रही हैं, जो वैज्ञानिकों के अनुसार एक गंभीर पर्यावरणीय संकेत है। जहां कभी अप्रैल और मई तक बर्फ की मोटी चादर नजर आती थी, अब अप्रैल की शुरुआत में ही बर्फ गायब हो गई है।
ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता का कहना है कि यह बदलाव सिर्फ मौसम का नहीं, बल्कि इंसानी गतिविधियों और ग्लोबल वार्मिंग का मिला-जुला परिणाम है। पहले जब बदरीनाथ के कपाट खुलते थे, धाम पूरी तरह बर्फ से ढका होता था। अब न सिर्फ बर्फबारी देर से हो रही है, बल्कि जो बर्फ गिरती भी है, वह तेजी से पिघल रही है।
डॉ. मेहता के अनुसार, बर्फ ग्लेशियरों को सूर्य की सीधी गर्मी से बचाने वाली जैकेट की तरह काम करती है। लेकिन जब यह ‘जैकेट’ गायब हो रही है, तो ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना तय है। इसका सीधा असर पर्यावरणीय संतुलन पर पड़ेगा और भविष्य में जल संकट और आपदाओं की आशंका बढ़ सकती है।
यह स्थिति सिर्फ बदरीनाथ ही नहीं, पूरे हिमालयी क्षेत्र के लिए चेतावनी है कि अगर अभी नहीं चेते, तो आने वाले समय में परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं।